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Channel: Hindi Sex Story – Antarvasna
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मैं चुदाई के दलदल में फँस कर चुदक्कड़ बन गयी-3

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मैं चुदाई के दलदल में फँस कर चुदक्कड़ बन गयी-1 

मैं चुदाई के दलदल में फँस कर चुदक्कड़ बन गयी-2
अब तक अपने पढ़ा .. वो हमें इसी हालत में छोड़ कर अपने कपड़े पहन कर कमरे से निकल गया। कई घंटों तक जया मेरी तीमारदारी करती रही, जब तक मैं नॉर्मल चल सकने लायक ना हो गयी। फिर हम किसी तरह घर लौट आये। मैं अपने घर तो शाम को पहुँची क्योंकि होटल से सीधे जया के घर गयी थी। भगवान का शुक्र है किसी को पता नहीं चला। और अब आगे …..  जया ने अपने वादे के मुताबिक मेरे रिश्ते की बात अपने मम्मी पापा से चलायी और वो मान भी गये। साथ ही साथ उसका रिश्ता भी गुड्डू के साथ पक्का हो गया। छः महीने में ही हम दोनों की शादी पक्की हो गयी – एक साथ। इन छः महीनों के दौरान गुड्डू ने मुझे कई बार अलग-अलग जगह पर बुला कर चोदा। उसके पास मेरी मूवी थी जिसे एक दिन उसने हम दोनों को दिखाया। मैं तो शर्म से पानी-पानी हो गयी पर जया ने खूब चटखारे लिये। मैं अब गुड्डू के चँगुल में पूरी तरह फँस चुकी थी। उसने मुझे अकेले में धमकी भी दे रखी थी की उसकी बात अगर मैंने नहीं मानी तो वोह ये फिल्म संजीव को दिखा देगा। खैर मैंने समझौता कर लिया।

शादी से कुछ ही दिन पहले गुड्डू के किसी रिश्तेदार की मृत्यु हो गयी। इसलिये उनकी शादी स्थगित हो गयी। मेरी और संजीव की शादी निश्चित दिन को ही होनी थी। हमारे घर में शादी की तैयारियाँ चल रही थी। जया गुड्डू को भी हमारे घर ले आयी। दोनों की सगाई हो चुकी थी इसलिये किसी को किसी बात की चिंता नहीं थी। हल्दी की रस्म शुरू होनी थी और मेरे घर वाले उस में व्यस्त थे। मेरे कमरे में आकर जया मुझे लेकर बाथरूम में घुसी।

“अपने ये कपड़े खोल कर ये सूती साड़ी लपेट ले” उसने कहा तो मैं अपने कपड़े खोलने लगी। तभी दरवाजे पर नॉक हुई। कौन है पूछने पर फुसफुसाती हुई गुड्डू की आवाज आयी। जया ने हल्के से दरवाजा खोला और वो झट से बाथरूम में घुस गया।

“मरवाओगे आप… इस तरह भरी महफ़िल में कोई देख लेगा तो बड़ी मुश्किल हो जायेगी… जम कर जूते पड़ेंगे” जया ने कहा। मगर वो कहाँ इतनी जल्दी मान जाने वाला था। वैसे भी ये बाथरूम हमारे बेडरूम से अटेच्ड था। इसलिये किसी को यहाँ आने से पहले बेडरूम का दरवाजा खटखटाना पड़ता। गुड्डू पहले से ही सारा इंतज़ाम करके आया था। उसने दरवाजा अंदर से बँद कर दिया था।

“आज तो नर्गिस बहुत ही सुंदर लग रही है,” गुड्डू ने कहा, “आज तो इसे मैं तैयार करूँगा… तू हट।”

जया मेरे पास से हट गयी और गुड्डू उसकी जगह आ गया। उसने मेरे कुर्ते को ऊँचा करना चालू किया और मैंने भी हाथ ऊँचे कर दिये। अब तक मैं इतनी बार गुड्डू की हम-बिस्तर हो चुकी थी की अब उसके सामने कोई शर्म बाकी नहीं बची थी। सिर्फ़ किसी के आ जाने का डर सता रहा था। उसने मेरे कुर्ते को बदन से अलग कर दिया। फिर मुझे पीछे घुमा कर मेरी ब्रा के हुक ढीले कर दिये। फिर दोनों स्ट्रैप पकड़ कर कँधे से नीचे उतार दिये और मेरी ब्रा खुलकर उसके हाथों में आ गयी। उसने उसे मेरे बदन से अलग करके अपने होँठों से चूमा और फिर जया को पकड़ा दी। फिर उसने मेरी सलवार के नाड़े को पकड़ कर उसे ढीला कर दिया। सलवार टाँगों से सरसराती हुई नीचे ढेर हो गयी। फिर उसने मेरी पैंटी के इलास्टिक को दो अँगुलियों से खींच कर चौड़ा किया और अपने हाथ को धीरे-धीरे नीचे ले गया। छोटी सी पैंटी बदन से केंचुली की तरह उतर गयी। मैं उसके सामने अब बिल्कुल नंगी हो गयी थी। उसने खींच कर मुझे शॉवर के नीचे कर दिया। फिर मेरे बदन को मसल मसल कर नहलाने लगा। जया ने रोकना चाहा कि अभी नहीं। लेकिन उसने कहा “तुम दोबारा नहला देना।” मुझे नहलाने के बाद उसने मेरे सारे बदन को पोंछ-पोंछ कर सुखाया।

“लो नर्गिस को ये साड़ी पहनानी है। देर हो रही है उसे हल्दी लगवानी है।” जया ने एक साड़ी गुड्डू की तरफ बढ़यी।
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“पहले मैं इसे अपने रस से नहला दूँ… फिर इसे कपड़े पहनाना।” कह कर गुड्डू ने मुझे बाथरूम में ही झुकने को मजबूर कर दिया। पहले गुड्डू की इन बदतमीजियों से मुझे सख्त नफ़रत थी मगर आजकल जब भी वो मुझे विवश करता था तो पता नहीं मुझे क्या हो जाता था। मैं चुपचाप उसके कहे अनुसार काम करने लगती थी… मानो उसने मुझे किसी मोहपाश में बाँध रखा हो। उसने पीछे से अपना लंड मेरी चूत में डाल दिया और मेरे बूब्स को मसलता हुआ धक्के मारने लगा।

“जल्दी करो… लोगबाग खोजते हुए यहाँ आते होंगे” जया ने गुड्डू से कहा। वो मुझे धक्के खाते हुए देख रही थी। “मेरी सहेली को क्या कोई रंडी समझ रखा है तुमने… जब मूड आये टाँगें फैला कर ठोकने लगता हो।”

गुड्डू काफी देर तक मुझे इस तरह चोदता रहा और फिर मेरी एक टाँग को ऊपर कर दिया। उस वक्त मैं दीवार का सहारा लिये हुए खड़ी थी और मेरा एक पैर जमीन पर था और दूसरे को गुड्डू ने उठा कर अपने हाथों में थाम रखा था। वोह मेरी फैली हुई चूत में अपना लंड डाल कर फिर चोदने लगा। मगर इस स्थिति में वो ज्यादा देर नहीं चोद सका और मेरी टाँग को छोड़ दिया। फिर उसने मुझे जया का सहारा लेने को मजबूर कर दिया और फिर शुरू हो गया। मैंने उसकी इस हरकत से तड़पते हुए अपने चूत-रस की वर्षा कर दी। वो भी अब छूटने ही वाला था। उसने अचानक अपना लंड बाहर निकाल लिया और मुझ घुटनों के बल झुका कर मेरे बदन को अपने वीर्य से भिगो दिया। मेरे चेहरे पर, बूब्स पर, पेट, टाँगों और यहाँ तक कि बालों में भी वीर्य के कतरे लगे हुए थे। कुछ वीर्य उसने मेरी ब्रा के कप्स में डाल दिया। गुड्डू ने फिर एक बार अपना लंड मसल कर मेरे बदन पर अपने वीर्य का लेप चढ़ा दिया। पूरा बदन चिपचिपा हो रहा था। फिर उसने मुझे उठा कर अपने वीर्य से भीगी हुए ब्रा मुझे पहना दी। उसने फिर मुझे बाकी सारे कपड़े पहना दिये और मैं बाथरूम से बाहर आ गयी। फिर जया ने आगे बढ़ कर दरवाजा खोल दिया और हम बाहर निकल गये। गुड्डू दरवाजे के पीछे छिप गया था और हमारे जाने के कुछ देर बाद जब वहाँ कोई नहीं था तो चुपचाप निकल कर भाग गया। उसकी हरकतों से मेरा दिल तो काफी देर तक जोर-जोर से धड़कता रहा। जया के माथे पर भी पसीना चू रहा था। हल्दी की रस्म अच्छी तरह पूरी हो गयी और फिर कोई घटना नहीं हुई।  आप यह कहानी altsexstories.नेट पर पढ़ रहे है |

मैं शाम को छः बजे ब्यूटी-पॉर्लर से मेक-अप करवा कर लौटी थी। ब्यूटीशियन ने बहुत मेहनत से साँवारा था। मैं वैसे भी बहुत खूबसूरत थी इसलिये थोड़ी मेहनत से ही एक दम अप्सराओं की तरह लगने लगी। सुनहरी रंग की लहँगा-चोली और सुनहरी रंग के ही हाई हील सैंडलों में एकदम संजीवकुमारी सी लग रही थी। जया हर वक्त साथ ही थी। काफी देर से गुड्डू कहीं नहीं दिखा था। शादी के लिये एक मैरिज हाल बुक किया गया था। उसके फर्स्ट फ्लोर पर मेरे ठहरने का स्थान था। मैं अपनी सहेलियों से घिरी हुई बैठी थी। रात को लगभग नौ बजे बैंड वालों का शोर सुनकर पता चला कि बारात आ रही है। मेरी सहेलियाँ दौड़ कर खिड़की से झाँकने लगी। वहाँ अँधेरा होने से किसी की नजर ऊपर खिड़की पर नहीं पड़ती थी।

अब मेरी सहेलियाँ वहाँ से एक-एक कर के खिसक गयीं। कुछ को तो बारात पर फूल वर्षा करनी थी और कुछ दुल्हा और बारात देखने के लिये भाग गयी। मैं कुछ देर के लिये बिल्कुल अकेली पड़ गयी। एक दरवाजा पास के कमरे में खुलता था। अचानक वो दरवाजा खुला और गुड्डू अंदर आया। मैं इस वक्त उसे देख कर एक दम घबरा गयी। उसने आकर बाहर के दरवाजे को बँद कर दिया।

“गुड्डू अब कोई गलत हर्कत मत करना… किसी को पता चल गया तो मेरी ज़िंदगी बर्बाद हो जायेगी… सब थूकेंगे मुझ पर और मैं किसी को मुँह दिखाने के भी काबिल नहीं रह जाऊँगी।” मैंने अपने हाथ जोड़ दिये और वो चुप रहा। “देखो शादी के बाद जो चाहे कर लेना… जहाँ चाहे बुला लेना मगर आज नहीं। आज मुझे छोड़ दो।”

“अरे मैं कोई रेपिस्ट थोड़ी हूँ जो तेरा रेप करने चला हूँ। आज इतनी सुंदर लग रही हो कि तुमसे मिले बिना नहीं रह पाया। बस एक बार प्यार कर लेने दो।”

वो आकर मुझसे लिपट गया। मैं उससे अपने को अलग नहीं कर पा रही थी। डर था सारा मेक-अप खराब नहीं हो जाये। मैंने अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया। उसने मेरे बूब्स पर हल्के से हाथ फिराये। शायद उसे भी मेक-अप बिगड़ जाने का डर था। “आज तुझे इस वक्त एक बार प्यार करना चाहता हूँ” कहकर उसने मेरे लहँगे को पकड़ा। मैं उसका मतलब समझ कर उसे मना करने लगी मगर उसने सुना नहीं और मेरे लहँगे को कमर तक उठा दिया। फिर उसने मेरी पिंक रंग की पारदर्शी पैंटी को खींच कर निकाल दिया और उसे अपनी पैंट की जेब में भर लिया। फिर मुझे खुली हुई खिड़की पर झुका कर मेरे पीछे से सट गया। उसने अपनी पैंट की ज़िप खोली और अपने खड़े लंड को मेरी चूत में ठेल दिया। मैं खिड़की की चौखट को पकड़ कर झुकी हुई थी और वो पीछे से मुझे चोद रहा था।

सामने बारात आ रही थी और उसके स्वागत में भीड़ उमड़ी पड़ी थी। और मैं – दुल्हन – किसी और से चुद रही थी। अँधेरा और सामने एक पेड़ होने के कारण किसी की नज़र वहाँ नहीं पड़ रही थी वरना गज़ब ढा जाता। सामने नाच गाना चल रहा था। सब उसे देखने में व्यस्त थे और हम किसी और काम में। कुछ देर में उसने ढेर सार वीर्य मेरी चूत में झाड़ दिया। मेरा भी उसके साथ ही चूत-रस निकल गया। बारात अंदर आ चुकी थी। तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया। गुड्डू झपट कर बगल वाले कमरे की और लपका। मैंने उसके हाथ को थाम लिया। “मेरी पैंटी तो देते जाओ।” मैंने कहा।

“नहीं ये मेरे पास रहेगी।” कह कर वो भाग गया। दोबरा दरवाजा खटखटाया गया तो मैंने उठ कर दरवाजा खोल दिया। दो-तीन सहेलियाँ अंदर आयीं।

“क्या हुआ?” उन्होंने पूछा

“कुछ नहीं… आँख लग गयी थी… थकान के कारण।” मैंने बात को टाल दिया मगर जया समझ गयी कि दाल में काला है। मैंने उसे अपने को घूरते पाया और मैंने अपनी आँखें झुका लीं। आप यह कहानी altsexstories.नेट पर पढ़ रहे है |

“चलो चलो। बारात आ गयी है। आँटी अंकल जय माला के लिये बुला रहे हैं” सब ने मुझे उठाया और मेरे हाथों में माला थमा दी। मैं उनके साथ माला थामे लोगों के बीच से धीरे-धीरे चलते हुए स्टेज पर पहुँची। गुड्डू का वीर्य बहता हुआ मेरे घुटनों तक आ रहा था। पैंटी नहीं होने के कारण दोनों जाँघें चिपचिपी हो रही थी। मैंने उसी हालत में शादी की। पूरी शादी में जब भी गुड्डू नज़र आया उसके हाथों के बीच मेरी पिंक पैंटी झाँकती हुई मिली। एक आदमी से शादी हो रही थी और दूसरे का वीर्य मेरी चूत से टपक रहा था। कैसी अजीब स्तिथि थी।

खैर मेरी शादी संजीव से हो गयी। शादी के बाद हम हनीमून पर पंजाब घूमने गये। वहाँ मेन चौंक में संजीव की बुआ रहती थी। उनके दो जवान लड़के थे जो वहीं पर बिज़नेस करते थे- सतीश और अमर। दोनों ही संजीव से बड़े थे। सतीश की शादी हो चुकी थी और अमर अभी कुँवारा था। हम हफ़्ते भर के लिये वहाँ पहुँचे। रास्ते में संजीव की तबियत बिगड़ गयी। जब हम वहाँ पहुँचे तो संजीव का बदन बुखार से तप रहा था। डॉक्टर से चेक-अप करवाया तो डॉक्टर ने बेड रेस्ट की सलाह दी। मेरा मन उदास हो गया। हफ़्ते भर के लिये तो आये थे घूमने वो भी अगर कमरे में ही बीत जाये तो कितना बुरा लगता है। संजीव ने मेरी परेशानी को समझ कर अपने भाइयों से मुझे घुमा लाने को कहा। मगर मैं शर्म के मारे नहीं गयी। सतीश की बीवी अरुणा थी नहीं। वो मायके गयी हुई थी नहीं तो मैं चली जाती। दोनों भाई काफी हैंडसम थे। उनके साथ का सोच कर ही मेरे गालों में लाली दौड़ जाती थी। वो दोनों भी मुझे गहरी नज़रों से देखते थे। दोनों इनसे बड़े थे लेकिन बुआ ने साफ कह रखा था कि हमारे यहाँ किसी प्रकार का घूँघट नहीं चलेगा। जैसे अपने मायके में रहती हो वैसे ही यहाँ रहना। इसलिये अब लुकाव या ढकाव का कोई सवाल ही नहीं था।

गुड्डू ने मुझे ग्रूप सेक्स की ऐसी आदत डाल दी थी कि अब मैं एक से पूरी तरह संतुष्ट नहीं हो पाती थी। उस दिन मैं नहीं गयी मगर हल्के एक्सपोज़र से दोनों को एक्साइट करती रही। ठंड काफी थी। मैंने एक पारदर्शी गाऊन पहना था और उसके अंदर कुछ भी नहीं था। ऊपर से मोटी उनी शॉल कुछ इस तरह ले रखी थी कि उनके सामने वो बार-बार मेरे सीने से सरक जाती और उन्हें अपनी चूंचियों की झलक दिखला कर मैं वापस शॉल ओढ़ लेती थी। वो दोनों मुझ से काफी खुल गये और हमारे बीच हॉट चर्चा और सैक्सी चुटकुलों के आदान-प्रदान होने लगे थे। कई बार अंजाने में मेरे बदन से टकरा जाते थे या कभी किसी बात पर मुझे छूते तो मेरे सरे बदन में करंट जैसा बहने लगता।

अगले दिन भी संजीव की तबियत में कोई सुधार नहीं हुआ तो उसके बार-बार कहने पर मैं सतीश और अमर भैया के साथ घूमने निकली। मैंने भरपूर मेक-अप किया। दोनों के पास कार थी मगर उसे नहीं लेकर दोनों ने एक टैक्सी बुक की थी। इसका कारण तो मुझे बाद में पता चला कि दोनों असल में मेरे नज़दीक रहना चाहते थे। कोई भी ड्राईव नहीं करना चाहता था। पीछे की सीट पर मेरी दोनों तरफ में दोनों भाइ सट कर बैठे थे। अब दोनों की शायद ड्राईवर से पहले से ही कुछ बात हो चुकी होगी क्योंकि वो काफी तेज़ चला रहा था। पहाड़ों के घुमावदार रास्तों पर हर मोड़ पर मैं कभी सतीश के ऊपर गिरती तो कभी अमर के ऊपर। दोनों मुझे संभालने के बहाने मेरे बदन को इधर-उधर से छू रहे थे। मैं भी उनके साथ खिलखिला रही थी। इससे उनकी भी हिम्मत बढ़ गयी। उन्होंने अपनी कुहनियों से मेरी एक-एक चूंची को भी दबाना शुरू किया। हम इसी तरह मस्ती करते हुए कईं जगह घूमे और घूमते घूमते दोपहर हो गयी।

अचानक बात करते-करते सतीश ने अपना हाथ मेरी जाँघ पर रख कर दबाया। मैंने अपने हाथों से उसके हाथ को वहाँ से हटा दिया। मगर कुछ देर बाद जब वापस उसने अपना हाथ मेरी जाँघों पर रखा तो मैंने कुछ नहीं बोला। उसे देख कर अमर ने भी अपना हाथ मेरी दूसरी जाँघ पर रख दिया और दोनों मेरी जाँघों पर हाथ फिराने लगे।

“क्या कर रहे हो? ड्राइवर देख रहा होगा। मैं तुम्हारे भाई की बीवी हूँ।” मैंने उन्हें रोकते हुए कहा।

कहानी जारी है …. आगे की कहानी पढने के लिए निचे दिए गए पेज नंबर पर क्लिक करे ..

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