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Hindi sex stories – गदराई लंगड़ी घोड़ी

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stories – गदराई लंगड़ी घोड़ी और ा होने के कारण अपने मोहल्ले का चहेता था। सभी जवान लड़कियों को मैं दीदी कहता था और शादीशुदा औरतों को आंटी कहता था।
कम उम्र में ही मैंने अपने जीवन की पहली कर ली थी, जब मेरे ही पड़ोस की कीर्ति दीदी ने मुझे सब कुछ सिखाया और चुदवाई। पहले मैं किसी को चोदने की नज़र से नहीं देखता था, पर कीर्ति दीदी ने नज़रिया बदल दिया। कीर्ति दीदी तो मेरे की दीवानी हो गई थी। होती भी कैसे न 8″ का था और काफी मोटा भी था। दीदी को बहुत देर तक चोदता था।
कीर्ति दीदी के बाद मैंने अपनी ही एक किराएदारनी को चोदा। चोदा क्या बस यूँ समझ लो कि जन्नत के मज़े लूटे।
जी हाँ, बबिता आंटी एक बेहद कामुक औरत थी। शादीशुदा थी और एक साल का बच्चा भी था उस समय। पति परदेस में मजदूरी करता था और -6 महीने में एक घर आता था। बबिता आंटी एक 27 साल की सांवली सी, छोटी कद की पर एक बेहद कामुक और गरम औरत थी। शादी को 4 साल हुए थे और शादी के बाद से ही हमारे घर में किराये पर रहती थी।
मेरे घर पर सब लोग सुबह को जाते और शाम को ही वापस आते थे। इसलिए ही किरायेदार रखा था। बबिता आंटी से बहुत था। बहुत मैं उनके पास ही सोता और पढ़ाई करता था। वो मुझे से रखती और रात में जब मैं उनके पास सोता तो कहानी सुनाती और खिलंदरी करती। पर उनकी खिलंदरी का मतलब मुझे जब समझ आया, जब मैंने कीर्ति दीदी को चोदा।
कीर्ति दीदी को चोदने के बाद मुझे उनकी खिलंदरी मज़ा देने लगी और गुदगुदी के बजाय खड़ा लगी। एक दिन मैं स्कूल नहीं गया और घर पर अकेला बबिता आंटी के पास था। उन्होंने खिलंदरी करनी शुरू की और कुछ ही देर में मैं उनके बेड के पास नंगा खड़ा होकर अपने सामने घोड़ी बनी हुई अपनी बबिता आंटी की मस्त गर्म को अपने मूसल से चोद था।
आंटी बिलकुल नंगी होकर बिस्तर पर घोड़ी बनी हुई थी और बहुत ही कामुक सिसकियाँ ले रही थी। दरअसल आंटी 4 महीनों बाद चुद रही थी और वो भी इतने बड़े से। उनका गदराया जिस्म बहुत प्यासा और कामुक लग था।
बबिता कीर्ति दीदी से कद में काफी छोटी थी पर बहुत ही गर्म औरत थी। चोदते वक़्त उनके गुदाज़ ड़ों पर हाथ फेरने में बहुत मज़ा आ था। इतना लाजवाब था सब कुछ कि क्या बताऊँ ! उस दिन के बाद से बबिता आंटी के साथ जो कुछ हुआ, वो अपने आप में एक बहुत ही गरम और बावला कर देने वाली कहानी । बबिता की को चोदना कभी पर लिपस्टिक लगा कर, तो कभी घोड़ी बना कर में मक्खन लगा कर। कभी-कभी तो नंगी घोड़ी को कुर्सी पर या खटिया पर 2- दुप्पट्टे से बाँध कर खूब तबियत से थप्पड़ मारते हुए चोदने में बहुत मज़ा आता था। नंगी बंधी हुई और घोड़ी बनी हुई जवान औरत की पर, चोदते वक़्त थप्पड़ मारने में बहुत मज़ा आता है यार। और जब औरत छोटे कद की सांवली सी बबिता जैसी हो तो…ओये होए…क्या मस्त मज़ा आता है।
पर अब जो मैं कहानी बताने जा हूँ, वो बहुत ही ख़ास है और मेरे दिल के बहुत ही करीब है। ये कहानी मेरे उस अहसास के े में जो किसी लड़के को तभी होता है, जब वो एक कुंवारी लड़की को पहली लड़की होने के बजाये एक गरम कामुक औरत होने का अहसास दिलाता है।
कीर्ति दीदी और बबिता आंटी दोनों ही पहले से चुदी हुई थीं। हालाँकि बबिता आंटी ने मुझसे उन सभी गर्म और वहशी तरीकों से चुदवाया और मरवाई, जो उनकी जैसी चुदक्कड़ के बस में था। पर एक अहसास वो कभी नहीं दे पाईं और वो था कुँवारेपन का अहसास।
पर वो दिन आया, जब मैंने एक कुंवारी लड़की को चोदा। वो कोई गैर नहीं थी, बल्कि मेरे ही मोहल्ले की एक 8 साल की दोनों पैरों से विकलांग एक बहुत ही ख़ास दीदी, जिनको सभी से मधु दीदी बुलाते थे।
मधु दीदी दिल की बहुत अच्छी थीं, पर बचपन से ही पोलियो के कारण उनके घुटनों के नीचे से दोनों पैर ख़राब थे जिसकी वजह से वो खड़ी नहीं हो सकती थीं। वो बाहर घूमने के लिए हाथ के पैडल वाली 3 पहियों की रिक्शा खुद ही चलाती थीं। मगर घर के अंदर वो घुटनों के बल ही चलती थीं, बिलकुल घोड़ी वाले स्टाइल में।
घर में वो हमेशा स्कर्ट ही पहनती थीं क्यूंकि वो फर्श पर यूँ ही घुटनों के बल घोड़ी की तरह चलती थीं जिससे सलवार ख़राब होने का डर रहता है।
बचपन से ही मैं दीदी के घर वालों के काफी नजदीक था और उनके घर खूब आना जाना था। मधु दीदी से खूब पटती थी। कीर्ति दीदी को चोदने से पहले सब कुछ सामान्य था, पर कीर्ति दीदी को चोदने के बाद मेरे अन्दर बदलाव आ गया।
इधर बबिता आंटी ने तो मुझे औरत के जिस्म का दीवाना ही बना दिया था। मैं बबिता आंटी को लगभग रोज़ चोदता था। इन सब की वजह से मेरे मन में मधु दीदी के लिए भी ख्याल आने लगे। जो दीदी मुझे अपनी सगी दीदी से ज्यादा ी लगती अब मुझे एक चलती फिरती घोड़ी नज़र आने लगी।
मैं जब भी उनके े में ऐसा सोचता तो मुझे बहुत बुरा लगता कि मैं अपनी दीदी के बारे में ऐसा कैसे सोच हूँ, पर यार जब-जब वो घर में घुटनों के बल चलती, मैं बस दीदी की हिलती हुई स्कर्ट देखता, दिल सोचने लगता कि जब दीदी के ड़ स्कर्ट के अंदर से इतने प्यारे लग रहे है, तो नंगे ड़ कैसे होंगे।
बस मन करता कि एक बार दीदी को इस घोड़ी वाली चाल में बिल्कुल नंगी चलते हुए देखूँ। कई बार तो दीदी को चलते देख कर खड़ा हो जाता, पर फिर मैं खुद को कोसता भी कि कितना गिर गया हूँ मैं। अपनी ही विकलांग दीदी को नंगा देखना चाहता हूँ। जब दीदी चलतीं, तो फिर से वही ख्याल आता।
के अनुभव से पहले मैंने बहुत बार मधु दीदी की नंगी जाँघें देखी थीं, जब कभी छत पर हवा से उनकी स्कर्ट ऊपर होकर उलट जाती थीं। दीदी की कच्छी में कैद उनके चूतड़ और नंगी जाँघें एकदम अचानक सामने आकर नुमाइश लगा देते थे, पर तब मैं उन्हें इस नज़र से नहीं देखता था। बस मुस्कुरा कर मुँह फेर लेता था।
लेकिन अब जब सच में मन करता था कि मधु दीदी के स्कर्ट के अंदर देखने का तो कभी स्कर्ट नहीं उड़ी क्यूंकि दीदी तेज़ हवा के वक़्त छत पर नहीं जाती थीं। एक बार मैं उन्हें छत पर लेकर भी गया इस उम्मीद में कि एक बार स्कर्ट उड़ जाये पर नहीं उड़ी।
मन में गन्दा लगता यह सब सोच कर लेकिन फिर भी उनकी मस्त गांड मुझे अच्छी लगने लगी। मैंने वैसे तो कीर्ति दीदी और बबिता आंटी की नंगी गांड का बहुत मज़ा लिया था पर फिर भी मधु दीदी की गांड बहुत अच्छी लगने लगी थी।
मैं बस सोचता रहता था कि नंगी गांड कितनी प्यारी और गर्म होगी। मुझे लड़की और औरतों के चूतड़ बहुत पसंद हैं। मैं अक्सर कीर्ति दीदी के चूतड़ों को नंगा करके चूमता और सहलाता रहता। चोदते वक़्त उनके नंगे जवान चूतड़ों के साथ मैं खूब खेलता। कभी चूतड़ पर हौले से थप्पड़ मारता तो कभी चिकोटी काटता।
जब मैं कीर्ति दीदी को घोड़ी बना कर चोदता तो उनके कसे चूतड़ों को हथेली से पकड़-पकड़ कर फैलाकर कर देखता और जोर से चूत चोदता। बबिता की गांड का तो मैं बाजा ही बजा देता। वो चुदक्कड़ तो अपनी गांड भी मरवाती। उनकी गांड चोदते वक़्त तो मैं गांड पर कस-कस कर थप्पड़ मारता और कभी-कभी तो नंगी गांड पर लकड़ी की पट्टी से भी मारता। आंटी खूब मज़े से चीखती हुई घोड़ी की तरह हिनहिनाती हुई गांड चुदवातीं।
अब मेरा मन में मधु दीदी की लंगड़ी चाल बस गई थी। मैं बहुत बार बहाने से उन्हें इधर-उधर चलने के लिए कहता और मज़े से उस घोड़ी की मटकती गांड देखता। ऐसे ही 2-3 महीने कट गए और मेरा दीदी के चूतड़ों के लिए आकर्षण खूब बढ़ गया।
एक दिन जैसे किस्मत खुल गई। उस दिन दीदी और मैं उनके घर पर अकेले थे और बातें कर रहे थे। दिन के करीब बजे थे। मैं और दीदी उनके रूम में तख्त पर बैठे थे। तभी वो बाथरूम जाने के लिए बोलीं और तख्त से उतरने लगीं। मैं खुश हो गया कि फिर से उनके मटकते चूतड़ का नज़ारा मिलेगा।
पर अचानक कुछ ऐसा हुआ कि मेरे होश उड़ गए। जैसे ही दीदी तख्त से नीचे उतरीं, उनकी स्कर्ट तख्त में लगी एक कील में फंस गई। दीदी तब तक तख्त से नीचे उतर कर घोड़ी वाली मुद्रा में हो गईं। तो जैसे जान ही निकल गई, तख्त से नीचे का नज़ारा देख कर।
दीदी फर्श पर घोड़ी बनी हुई और स्कर्ट कील में अटकी हुई। सबसे जानलेवा तो ये था कि उस दिन दीदी ने कच्छी भी नहीं पहन रखी थी। मेरे सामने सिर्फ नंगी जाँघें ही नहीं बल्कि एक नरम गदराई और बिलकुल नंगी कुँवारी गांड स्कर्ट के ऊपर हो जाने से झांक रही थी।
मेरे तो मुँह में पानी आ गया। गांड इतनी ज़बरदस्त भी हो सकती है, यह पहली बार लगा। चूतड़ इतने चिकने और मुलायम लग रहे थे कि बिना पकड़े मन नहीं मानेगा।
दीदी को स्कर्ट ऊपर होने का पता नहीं चला क्यूंकि वो तख्त के नीचे कुछ ढूंढ़ रही थीं। शायद विकलांग वाले चप्पल जो वो बाथरूम जाते वक़्त पहनती थीं। चप्पल ढूंढते वक़्त वो थोड़ा इधर-उधर हिल रही थीं जिससे उनके नंगे चूतड़ थिरक रहे थे।
मैं तो पागलों की तरह ऊपर से उस मस्त लंगड़ी घोड़ी की गांड देख रहा था कि अचानक मेरे मुँह से लार की धार निकल कर ठीक उनकी नंगी गांड पर गिरी। गरम लार गिरते ही दीदी ने पीछे घूम कर देखा और एकदम दंग रह गई।
दीदी फर्श पर घोड़ी बनी हुई और स्कर्ट कील में अटकी हुई। सबसे जानलेवा तो ये था कि उस दिन दीदी ने कच्छी भी नहीं पहन रखी थी। मेरे सामने सिर्फ नंगी जाँघें ही नहीं बल्कि एक नरम गदराई और बिलकुल नंगी कुँवारी गांड स्कर्ट के ऊपर हो जाने से झांक रही थी।
मेरे तो मुँह में पानी आ गया। गांड इतनी ज़बरदस्त भी हो सकती है, यह पहली बार लगा। चूतड़ इतने चिकने और मुलायम लग रहे थे कि बिना पकड़े मन नहीं मानेगा।
दीदी को स्कर्ट ऊपर होने का पता नहीं चला क्यूंकि वो तख्त के नीचे कुछ ढूंढ़ रही थीं। शायद विकलांग वाले चप्पल जो वो बाथरूम जाते वक़्त पहनती थीं। चप्पल ढूंढते वक़्त वो थोड़ा इधर-उधर हिल रही थीं जिससे उनके नंगे चूतड़ थिरक रहे थे।
मैं तो पागलों की तरह ऊपर से उस मस्त लंगड़ी घोड़ी की गांड देख रहा था कि अचानक मेरे मुँह से लार की धार निकल कर ठीक उनकी नंगी गांड पर गिरी। गरम लार गिरते ही दीदी ने पीछे घूम कर देखा और एकदम दंग रह गई। उनकी मस्तानी गांड की नंगी नुमाइश लगी हुई थी। दीदी जल्दी से कील से स्कर्ट बाहर निकलने की कोशिश लगीं। स्कर्ट कील में बुरी तरह फंस गई थी और स्कर्ट नहीं निकल रही थी।
“ओह नीटू ! जरा निकाल ना स्कर्ट ! देख कैसे फंस गई है !” दीदी ने घोड़ी बने हुए पीछे घूम कर कहा।
मैं तो चाह रहा था कि यह स्कर्ट यूँ ही फँसी रहे, पर मैं जल्दी से खुद को काबू कर कील से स्कर्ट हटाने लगा। मैं उन नंगे चूतड़ों का नज़ारा और लेना चाहता था। तभी मेरे दिमाग में एक ख्याल आया। स्कर्ट इस तरह फंस गई थी कि उसे दीदी खुद नहीं निकाल सकती थीं, खुद से निकलने के लिए दीदी को स्कर्ट ही उतारनी पड़ती।
“दीदी, यह तो बुरी तरह फंस गई !” मैंने स्कर्ट को और कील में फंसा दिया।
“हे भगवान्… मैंने तो कच्छी भी नहीं पहनी आज !” वो अपना एक हाथ पीछे करके अपनी नितम्बों की दरार पर रखती हुई बोलीं- जल्दी से कुछ कर ना… मुझे शर्म आ रही है और यह चिकना-चिकना क्या गिरा दिया मेरे कूल्हों पर ! दीदी का हाथ मेरी राल पर पड़ते ही दीदी ने पूछा।
दीदी शर्म के मारे जल्दी से आगे की तरफ जोर से घुटनों पर चली और चिर्र्र.र्र्र्र..र्र्र की आवाज़ के साथ स्कर्ट के दो टुकड़े हो गए पर दीदी जल्दी से बाथरूम में घुस गई।
रूम से बाथरूम तक जाती हुई मधु दीदी बहुत ही कामुक लग रही थी। जैसा मैंने सोचा था उससे भी कहीं ज्यादा। घोड़ी की तरह चलती हुई और फटी हुई स्कर्ट दोनों नंगे चूतड़ों के दायें-बांयें लटके हुए झूल रहे थे। बहुत ही कामुक नजारा था।
मैं तो तुरंत उस नंगी लंगड़ी घोड़ी की गांड मारना चाह रहा था। मुझे बस एक जवान नंगी, गर्म और लंगड़ी औरत दिखाई दे रही थी। मैं पूरी तरह से बहक गया था और दीदी को चोदना चाहता था। मैं अपना लंड पकड़ कर दीदी के बाहर आने का इंतज़ार लगा और सोचने लगा कि कैसे दीदी को चोदूँ।
मेरा लंड मेरे दिमाग पर हावी हो चुका था और मैं बस उस कामुक दीदी को रगड़ कर चोदना चाहता था फिर वो चाहे मेरी दीदी हो या फिर एक लंगड़ी लड़की।
कुछ देर बाद बाथरूम का दरवाज़ा खुला और मेरी घोड़ी दीदी बाहर कमरे में आई।
“अच्छा हुआ कोई और नहीं था रूम में… वरना बड़ी शर्म आती…” दीदी मेरी मंशा को नहीं जान रही थीं और बात कर रही थीं। वो ऐसे बात कर रही थीं जैसे मेरे देखने से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा हो।
“आपकी तो स्कर्ट ही फट गई थी!” मैंने दीदी को स्कर्ट पहने देख पूछा।
“हाँ ……पर बाथरूम में कुछ पिनें पड़ी थीं तो लगा लीं !” दीदी कह कर घूम गई जिससे मैं उनकी स्कर्ट पर लगी पिनें देख सकूँ।
“हाय राम ! यह लंगड़ी तो मुझे आज पागल ही कर देगी !” मैंने मन में सोचा जब मैंने दीदी की फटी स्कर्ट से पिनों के बीच में से झांकते मांसल चूतड़ों को देखा। बस यह वही नजारा था जो कुछ साल पहले एक फ़ैशन वीक में रैम्प पर एक मॉडल गौहर खान की स्कर्ट फ़टने से हो गया था। फ़र्क इत्ना था कि गौहर ने जानबूझ कर स्कर्ट का वो हाल किया थ और अपने चूतड़ छिपाने का नाटक किया था पर यहाँ मधु की स्कर्ट अपने आप फ़टी थी पर वो खुद मुझे अपने चूतड़ दिखा रही थी।
“आनंन्न्न हान्न्नन्न्न्न…” मेरे मुँह से सिसकारी निकल गई।
“क्या हुआ? और किसी को बताना मत यह बात कि मैं इस तरह से नंगी हो गई थी। चलो यह अच्छा था कि तू था उस वक़्त। मत कहना किसी से भाई…” दीदी भावुक हो गई।
“अभी भी भाई कह रही हो दीदी ! मैंने ्हें उस रूप में देखा !” मैंने चाल चली।
“पर जो हुआ अनजाने में हुआ…भाई !”
“मत कहो भाई मुझे दीदी… मैं तो आपकी खूबसूरती से पागल हो गया था।”
“यह तू क्या कह रहा है?” मधु दीदी ने चौंक कर कहा।
“अच्छा सच बता क्या तू मुझे उस समय एक भाई की नज़र से देख रहा था या एक मर्द की नज़र से?” दीदी ने बड़े भोलेपन से पूछा।
“मुझे तो बस इतना पता है कि एक नंगी लड़की किसी की दीदी या कोई रिश्तेदार नहीं होती… वो तो बस एक कामुक, गर्म औरत होती है, जिसका नंगा गर्म जिस्म देखकर कोई भी मर्द उसे प्यार करना चाहे।” मैंने अपने मन की बात आखिरकार कह ही दी।
थोड़ी देर के लिए हम दोनों चुप हो गए।
“क्या मैं सुंदर हूँ?” दीदी ने चुप्पी तोड़ी।
“सुंदर एक औरत की तरह या एक दीदी की तरह? दीदी सच में आप एक बहुत अच्छी दीदी हो और अच्छे संस्कार वाली हो। मैंने कभी आप को मर्द की नज़र से नहीं देखा बल्कि अपनी दीदी ही माना। आप बहुत अच्छी हो दीदी।” मैंने भी जोश में और भावुक हो कर कहा।
“पर क्या मैं एक सुंदर औरत हूँ?” दीदी फिर से सवाल पर वापस आ गईं। उन्हें अब मज़ा आने लगा था। 2 बज रहे थे और कोई शाम के 5 बजे से पहले नहीं आने वाला था।
“आप एक बहुत ही गर… छोड़ो दीदी रहने दो आप सोचोगी कि मैं कितना गन्दा हूँ।”
“तू शर्मा मत… बोल ना… बता न अपने मन की बात।”
“दीदी आप सच में एक बहुत गर्म और मस्त लड़की हो और यह मैंने इस कील की वजह से आज जाना। आज जाना कि आप चल नहीं सकती हो, पर आपका नंगा शरीर मर्द में आग लगा दे। मैं क्या कोई भी अगर आप को इस तरह से देख लेता तो आपको जरूर चोद देता। मेरी भी राल टपक गई थी आपके नंगे चूतड़ देख कर तो।”
दीदी के लिए ये सब बातें नई थी। मेरी मुँह से वो पहली बार ऐसी बातें सुन रही थी और अपनी तारीफ सुन कर वो भावुक हो गई।
“तू तो ऐसे ही कह रहा है। मेरी तो शादी भी नहीं होगी… लंगड़ी जो हूँ और तू तो चोदने की बात कर रहा है… मेरी तरफ तो कोई लड़का देखता भी नहीं है।” दीदी ने अपनी दिल के बात कही और रो पड़ीं।
मैं दीदी के मुँह से ‘चोदना’ सुन कर चौंक गया और समझ गया कि आज यह लंगड़ी शाम को घोड़ी बन कर भी नहीं चल पाएगी। मुझे अपनी लाइन अब साफ़ करनी थी। 5 घंटे थे हमारे पास। मैंने हिसाब लगा लिया कि एक घंटे में मैं दीदी को चुदवाने के लिए राज़ी कर लूँगा और फिर 4 घंटे तबियत से चोदूँगा इस लंगड़ी कुंवारी घोड़ी को।
पर जब मैंने उसे अपनी दीदी के नज़र से देखा तो सोचा कि प्यार से ही करना ठीक होगा, नहीं तो दीदी को दर्द होगा। फिर मुझे उनकी नंगी गांड याद आई और सोचा कि ऐसी कामुक गरम गांड को तो बेरहमी से ही चोदना चाहिए। सच में बहुत मस्त गांड थी दीदी की। मेरा मन फिर से उन्हें नंगा देखने का लगा।
“नहीं दीदी सच में बहुत सेक्सी लड़की हो। मेरा तो फिर से मन कर रहा है।” मैंने कहा।
“क्या मन कर रहा है?” दीदी ने बड़े ही कामुक अंदाज़ में पूछा।
“दीदी क्या मैं एक बार आपको उसी तरह देख सकता हूँ जैसे कुछ देर पहले देखा था?”
“स्कर्ट उठा कर… या कील में फंसा कर?” दीदी मुस्कुरा कर बोलीं।
“नहीं दीदी सिर्फ पिनें खोल दो… स्कर्ट तो पहले ही फटी पड़ी है” मैं आने वाले लम्हे को सोच कर बेकाबू हो कर बोला।
“पर मैंने कच्छी पहन ली है।” दीदी रोमांचित थीं और नखरे कर रही थीं।
“आप झूठ बोल रही हो… मुझे पता है कच्छी नहीं पहनी है… आपके चूतड़ अभी भी नंगे ही हैं। मैंने पिनों के बीच में से देखा है।”
“नालायक… !” और दीदी हंस पड़ी और फिर से तख्त पर चढ़ गई। मुझे लगा था कि शायद यह सब मजाक में हो रहा है पर जब दीदी घूम कर बिस्तर के किनारे पर बैठ गई और चूतड़ उभार कर मेंढक की तरह हो गईं और कहा- ले आराम से निकालना, पिनें कहीं चुभ ना जायें।
मैंने कांपते हाथों से एक-एक कर पांचों पिनें निकाल दीं। फटी स्कर्ट में से चूतड़ झाँकने लगे थे, पर छठी पिन अभी भी स्कर्ट के ऊपरी हिस्से पर लगी थी और मस्त गदराये चूतड़ों को छुपाने की कोशिश कर रही थी।
“दीदी क्या आप सच में इसके लिए तैयार हो?” मैंने अच्छा बच्चा बन कर पूछा।
“तुझे देखना है ना ! तो फिर क्यूँ पूछ रहा है?”
दीदी का इतना कहना था और छठी पिन भी निकल गई। स्कर्ट के दोनों चीथड़े मांसल चूतड़ों पर से सरक कर साइड में जा गिरे और मेरे लिये दुनिया की सबसे हसीन गांड, मस्त चिकने चूतड़ों वाली मेरे सामने नंगी खड़ी थी। इतनी प्यारी गांड मैंने कभी फिल्मों में भी नहीं देखी थी।
“कितने मस्त सुंदर-सुडौल चूतड़ हैं मधु दीदी आपके…।”
अब मेरे लिए और रुकना मुमकिन नहीं था तो मैंने बिना कुछ सोचे समझे अपने कपड़े उतारे और मधु दीदी की नंगी गांड को बेतहाशा चूमने लगा। इससे दीदी और ज्यादा उत्तेजित हो गई और उसकी चूत से उसका नमकीन पानी निकलने लगा।
“ओह दीदी मैं ्हें चोदना चाहता हूँ, अभी इसी वक़्त।”
दीदी कुछ नहीं बोली और यूँ ही घोड़ी बनी रही। मैं समझ गया कि दीदी भी चुदना चाहती हैं। अभी मैं रुकना नहीं चाहता था तो मैंने लण्ड दीदी की गीली चूत पर रखा और उसके स्तनों को चूमते हुए एक जोरदार झटका मारा। मेरा आधा लण्ड लंगड़ी की चूत में घुस गया।
इस धक्के से दीदी के मुँह से एक चीख निकल गई और मुझसे बोली- वीर, थोड़ा रुक जाओ !
पर रुकने की बजाय मैंने एक धक्का और उसकी चूत में मारा और मेरा 8 इंच लंबा पूरा लण्ड लंगड़ी घोड़ी की चूत में घुस गया।
इस धक्के से दीदी तड़प सी उठीं और मैंने दोनों हाथों से दीदी के स्तन मसलना शुरू कर दिए और धीरे-धीरे धक्का लगाना शुरू कर दिया।
थोड़ी देर बाद मेरी घोड़ी थोड़ी शांत हुई और मज़े से चुदवाने लगी। अब मैं इत्मीनान से अपनी गरम लंगड़ी दीदी को घोड़ी बना कर चोद रहा था।
मैं धक्के लगा रहा था और वो, ‘जोर से करो, हाँ, और करो’ की सीत्कारों से मुझे और उत्साहित करती जा रही थी और मैं उसे जोर-जोर से चोदे जा रहा था। हर धक्के के साथ दीदी चरम पर पहुँच रही थी और मैं मजे के सागर में।
मैं उसे चोद रहा था और मेरे चोदते-चोदते ही दीदी स्खलित हो गई और उसने मुझे कस कर पकड़ने को कहा। अब मैं भी ज्यादा देर रुक सकने की हालत में नहीं था तो मैंने दीदी के स्तनों को मसलते हुए कुछ और धक्के लगाए और सारा वीर्य मैंने दीदी की चूत में भर दिया और थक कर दीदी पर ही लेट गया।
यह थी मेरी पहली कुंवारी चूत।

आप लोग पिछले भाहों में पढ़ ही चुके हैं कि मेरी उम्र उस वक़्त सिर्फ 18 साल थी, जब मैंने अपनी पहली की थी। आपने पढ़ा कि कैसे मैंने कीर्ति दीदी और बबिता आँटी को चोदने के लगभग 6 महीने बाद पहली बार एक कुंवारी लड़की मेरी दोनों पैरों से अपाहिज मधु दीदी चोदी।
यह बात 2008 के अप्रैल महीने की है, जब मधु दीदी अपनी 10वीं की बोर्ड की परीक्षा देकर स्कूल से फारिग हो गई थीं। कीर्ति दीदी और बबिता आँटी ने तो खुद ही पहल करके मुझे चोदने का मौका दिया था, पर मधु दीदी का मामला बड़ा संवेदनशील था। मैंने पहली बार किसी लड़की को पटाने की कोशिश की थी। मधु दीदी को चोदने का मन मेरा पिछले 3 महीनों से हो रहा था और इस कोशिश का नतीज़ा मुझे 25 अप्रैल 2008 को मिला, जब मैंने पहली बार मधु दीदी की कुंवारी चूत में अपना लंड ा और उन्हें पहली बार चोदा।
अगर उस दिन तख्त की कील में दीदी की स्कर्ट न अटकी होती तो मैं मधु दीदी को कभी नहीं चोद पाता। उस दिन दीदी को चोदने के बाद मैं झड़ कर दीदी के ऊपर ही लेट कर अपने चरम आनन्द को महसूस कर रहा था। मुझे पहली बार चोदने में इतना आनन्द मिला था, इतनी कामुक हुई थी कि मैं मात्र 20 ही दीदी की चूत चोद पाया था।
दरअसल इतनी इच्छा थी दीदी को चोदने की कि जब दीदी ने खुद अपनी स्कर्ट उतारी तो मैं बेकाबू हो गया। दीदी के नंगे चूतड़ों को पहली बार हाथ से छुआ तो और आग लग गई। दरअसल दोस्तो, घोड़ी स्टाइल मेरा सबसे पसंदीदा स्टाइल है। घोड़ी बनी लड़की तो बड़ी ही कामुक लगती है। इसलिए मैं बहुत गर्म हो गया था और मैंने बिना दीदी के जिस्म को ठीक से प्यार करे, उनकी कर ी।
पर मुझे ख़ुशी इस बात की थी कि बाद के 10 मिनट दीदी आनन्द के मारे पागल हो रहीं थीं और ज़ोरों से मज़े से सिसकार भी रही थीं। दीदी मेरे साथ ही झड़ भी गई थीं। हम दोनों ही संतुष्ट थे।
10 मिनट दीदी के ऊपर लेटने के बाद मैंने धीरे से अपनी आँखें खोलीं। मुझे जैसे होश सा आया। मैं बिल्कुल नंगा अपनी लंगड़ी मधु दीदी के ऊपर लेटा था। मैं उठ कर खड़ा हो गया और देखा तो मेरे लंड पर खून लगा था। यह मेरे लिए बिल्कुल नया अनुभव था। खून देख कर मुझे बहुत संतुष्टि हुई। आख़िर मैंने पहली बार एक कुंवारी चूत जो चोदी थी।
अगले ही पल जैसे मुझे दीदी का ख्याल आया। अब मुझे समझ आया कि दीदी शुरू के 10 मिनट इतनी ज़ोरों से क्यूँ सुबक रही थीं। मुझे अहसास हुआ कि दीदी को शायद बहुत दर्द हुआ होगा। मैंने दीदी की तरफ देखा। दीदी अभी भी किसी मासूम सी बच्ची की तरह बिल्कुल नंगी उल्टी लेटी थीं। मेरी दीदी बड़ी प्यारी सी नंगी गुड़िया लग रही थी।
तभी मेरी नज़र बिस्तर पर लगे बहुत से खून के दाग पर पड़ी। मुझे अब दीदी पर प्यार आ रहा था। मैं दीदी के पास नंगा ही बैठ गया। दीदी उल्टी लेटी थीं और अपना चेहरा अपने हाथों पर रख रखा था। मैं थोड़ा झुका और दीदी की नंगी मुलायम कमर पर प्यार से हाथ फेरा और एक चुम्मी ली।
जैसे ही मैंने दीदी की कमर पर चूमा मुझे दीदी की हल्के-हल्के रोने की आवाज़ सुनाई दी। मैं थोड़ा डर गया कि कहीं दीदी को चुदाई के वक़्त ज़ोर से लग तो नहीं गई, क्यूंकि खून भी देख चुका था और दीदी अब सुबक भी रहीं थीं।
“दीदी मुझे माफ़ कर दो। आपको बहुत दर्द हुआ ना दीदी मेरे लंड से?” मैंने दीदी से माफ़ी सी माँगी।
दरअसल चुदाई के पहले भी दीदी और मैं एक-दूसरे के बड़े अच्छे दोस्त टाइप के थे, पर वो सब सही कहते हैं न कि एक लड़के और लड़की में दोस्ती किसी भी पल चुदाई में बदल सकती है और आज दीदी और मेरी दोस्ती चुदाई में बदल गई थी। मुझे अब दीदी के रोने से बहुत दुःख भी हो रहा था कि मैंने अपनी इतनी प्यारी दीदी को चोद ा।
मुझे ऐसा लगने लगा जैसे मैंने दीदी के विकलांग होने का फ़ायदा उठाया। दीदी और मैं एक-दूसरे के बहुत करीब थे पर अब मुझे डर लग रहा था कि अब दीदी पता नहीं मुझसे बात करेंगी कि नहीं। मैं शर्मिंदा होकर तख्त से उठने लगा, तो दीदी ने मेरा हाथ पकड़ लिया और घूम कर मेरे बदन से लिपट गईं और मेरे होंठ चूम लिए और फिर मेरी गोदी में चढ़ने की कोशिश करने लगीं।
मैं तुरंत बिस्तर से खड़ा हुआ और दीदी को नंगी हालत में किसी बच्ची की तरह उठा कर गोद में ले लिया। दीदी तुरंत मेरे सीने से लिपट गईं। मैं समझ गया कि बात कुछ और है। दीदी चुदाई से नाराज़ नहीं हैं बल्कि कुछ और बात है। दीदी का चुदने के बाद अभी भी इस तरह मेरी गोदी में बिल्कुल नंगी हालत में मुझसे लिपटना मुझे बड़ा अच्छा लगा।
दीदी का वज़न इतना कम था कि मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैंने किसी 11-12 साल की बच्ची अपनी गोद में उठा रखी हो। कल तक जिस दीदी को नंगा तक देखना बस कोरी कल्पना लगता था आज वही दीदी बिल्कुल नंगी मेरी गोद में चढ़ी हुई थीं। दीदी अभी भी मेरे सीने में मुँह छुपाए धीरे-धीरे सुबक रहीं थीं। मैं दीदी की नंगी कमर और मुलायम चूतड़ों पे हाथ फेर रहा था, जैसे उन्हें चुप कराने की कोशिश कर रहा होऊँ।
“क्या हुआ… है दीदी आपको…? अब बताओ भी…पुन्च्छ… पुन्च्छ… पुन्च्छ… पुन्च्छ…।” मैं दीदी के कन्धों पे चूमता और दीदी की परेशानी पूछ रहा था।
मैंने 4-5 बार दीदी से इस तरह पूछा पर दीदी ने जवाब देने के बजाये मुझे और कस कर जकड़ लिया और फिर उनकी पकड़ ढीली हुई और वो मेरी गोदी से उतर कर फिर से तख्त पर उल्टी लेट गईं।
“क्या हुआ दी…?”
“तू अब घर जा वीर… प्लीज…!”
“दीदी आओ पहले ्हारी चूत को गुनगुने पानी से धो दूँ और विको टर्मरिक लगा दूँ। देखो थोड़ा खून भी निकल गया था ्हारी चूत से।” मैंने हिम्मत करके उन नाज़ुक पलों में दीदी की मदद करने के लिए कहा।
“मैं कर लूँगी वीर पर अभी तू जा… मुझे शर्म आ रही है।”
“अच्छा बड़ी आईं अपने आप करने वाली, बताना ज़रा चूत की सिकाई कैसे होती हैं?” मैं खुद हैरान था कि दीदी को चोदने के बाद मैं दीदी का इतना ख्याल रख रहा था।
बबिता की तो मैं चोद-चोद कर हालत ख़राब कर देता था और फिर कभी इस तरह उसकी चूत की सिकाई नहीं करता था, पर आज दीदी की वजह से ही मैं इतना ज्यादा ध्यान रखता हूँ किसी को भी चोदते वक़्त कि लड़की को ज़रा सी भी परेशानी न हो।
हाँ… बबिता को कई बार मैंने अपनी बुरी तरह चुदी हुई चूत की सिकाई करते देखा था। वो अपनी चूत की सिकाई गरम हल्दी के पानी में रोटी का टुकड़ा डुबा कर करती थी। बबिता कहती है कि इससे चूत ज्यादा चुदने से काली भी नहीं पड़ती और हमेशा चूत मुलायम और कसी बनी रहती है।
मुझे उस समय दीदी की इतनी चिंता हो रही थी कि मैं खुद ही नंगा रसोई में गया और कैसरोल से सुबह की एक रोटी और हल्दी वाला गर्म पानी ले आया।
“चलो दीदी सीधी लेट जाओ… आओ… मुझे सिकाई करने दो अपनी इस तितली की।”
दीदी ने फिर अपने आँसू पोंछे और सीधी होकर लेट गईं।
“ले तू मानेगा नहीं… और ये रोटी का क्या करेगा?”
“अरे दीदी इस रोटी से ही तो सिकाई होगी ्हारी इस बुलबुल जैसी चूत की।”
दीदी शर्मा गईं और अपनी आँखें बंद कर लीं। मैंने रोटी का एक बड़ा टुकड़ा तिकोने आकार का तोड़ा जैसे पिज़्ज़ा का टुकड़ा होता है और उसे हल्दी वाले गरम पानी में डुबो दिया। फिर 1 मिनट बाद टुकड़ा बाहर निकालकर पहले हाथ पर रख कर देखा कहीं ज्यादा गरम तो नहीं है और फिर दीदी की नंगी सूजी हुई चूत पे रख दिया।
“आआह्ह… वीर…!”
“बस बस दीदी… इस रोटी की सिकाई से ्हारी चूत को काफी आराम मिलेगा।”
मैंने दीदी की आँखों से फिर से एक आँसू निकलता देखा और उन्होंने फिर से अपनी आँखें बंद कर लीं।
मैंने करीब 20 मिनट तक रोटी को हल्दी के पानी में डुबो-डुबो कर दीदी की चूत की सिकाई की। उसके बाद जब मैंने दीदी की चूत को अपने बनियान से पोंछना चाहा तो दीदी ने फिर से कहा, “ओह्ह्ह…वीर…अब जा तू…मैं ठीक हूँ…!”
मैंने वहाँ और रुकना ठीक नहीं समझा। दीदी के आँसू अभी भी आ रहे थे। मैंने अपने कपड़े पहने और जल्दी से दीदी के घर से निकलकर अपने घर आ गया। वापस आकर मैं थोड़ा परेशान हो गया। मुझे लग रहा था कि शायद दीदी बहक गई थीं और उन्होंने मदहोशी में मुझसे अपनी चूत चुदवा ली।
पर अब क्या हो सकता था ! अब तो दीदी की चूत चुद चुकी थी। मुझे घर आकर भी विश्वास नहीं हो रहा था कि मैं अभी अभी एक लंगड़ी और कुंवारी लड़की की चूत चोदकर आ रहा हूँ। मैं अपने बिस्तर पर लेट गया और उन हसीन पलों को याद करने लगा, जब मैं दीदी को पहली बार घोड़ी बना कर चोद रहा था।
और तभी लगा कि क्या सही में मैंने एक लंगड़ी लड़की को बहकाया और चोदा। यही सब सोचते सोचते मुझे नींद आ गई।

 

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